कुमार गांव स्थित
मां नेतुला मंदिर प्राचीन काल से ही हिंदू धर्मावलंबियों के लिए आस्था का केंद्र रहा
है. हजारों वर्षो पूर्व से ही यहां नेत्र व पुत्र प्रदाता देवी के रूप में मां
नेतुला की पूजा होती आ रही है.
मां नेतुला मंदिर
का इतिहास: जैन धर्म की
पुस्तक कल्पसूत्र के अनुसार जैन धर्म के 24 वें र्तीथकर भगवान महावीर ने ज्ञान की प्राप्ति के लिए घर का त्याग किया था
तो कुण्डलपुर से निकल कर उन्होंने पहला रात्रि विश्रम कुमार गांव में ही मां
नेतुना मंदिर के समीप एक वट वृक्ष के नीचे किया था.
लगभग 26 सौ वर्ष पूर्व घटी इस घटना और कल्पसूत्र में
वर्णित मां नेतुला की पूजा व बली प्रथा का वर्णन इस मंदिर के पौराणिक काल के होने की पुष्टि करती
है.
इस प्रकार हजारों
वर्षो की गौरव गाथा को अपने में समेटे मां नुतुला आज भी भक्तों की मनोकामना पूरी
कर रही है.
मान्यता है कि
मां के दरबार में सच्चे मन से जो मुरादें मांगी जाती है, वह माता की कृपा से पूरी
हो जाती है. जिसके फल स्वरूप प्रत्येक मंगलवार को माता के दरबार में भक्तों की
भारी भीड़ उमड़ती है. वहीं नवरात्र के दौरान मां नेतुला की महत्ता और भी बढ़ जाती
है.
नवरात्र के दौरान
माता के दरबार में कष्टी देने आती हैं जो कि नवरात्र के दौरान नौ दिनों तक
पूर्णरूपेण फलाहार पर रह कर माता के दरबार की साफ -सफाई व पूजा- अर्चना करती है. मान्यता
है कि मां नेतुला दरबार में कष्टी देने से नेत्र से संबंधित समस्या दूर हो जाती
है.
इस कारण सालों भर
माता के दरबार में नेत्र रोग से परेशान पुरूष एवं महिला श्रद्धालुओं का आना जाना
लगा रहता है.
क्षेत्र में
सिद्ध पीठ के रूप में विख्यात मां नेतुला मंदिर में सती के पीठ की पूजा होती है.
नवरात्र के दौरान इस मंदिर की पूजा का विशेष महत्व होता है.
धार्मिक पत्रिका
कल्याण के वर्ष 1954 के र्तीथकर
विशेषांक में नेतुला मंदिर में मां दुर्गा के तृतीय स्वरूप मां चन्द्रघंटा के
विराजने व इनकी पूजा का वर्णन किया गया था. पूर्व में माता का मंदिर काफी जीर्ण-शीर्ण
अवस्था में था. जिसका गिद्धौर के चंदेल वंश के राजा रावणोश्वर सिंह ने जीर्णोद्धार
किया था. वहीं सन् 2000 में काशी पीठ के
शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती ने नये मंदिर की आधार शिला रखी थी. जिस पर आज भव्य
मंदिर का निर्माण किया जा रहा है. शारदीय नवरात्र के दौरान महा अष्टमी की रात्रि
में माता के दर्शन के लिए भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है और हजारों की संख्या में
बकरे की बली दी जाती है.
विडंबना यह है कि
क्षेत्र के लोगों की आस्था का केंद्र यह मंदिर प्रशासनिक उदासीनता का शिकार है और
नवरात्र के दौरान प्रत्येक दिन हजारों लोगों की भीड़ उमड़ने के बावजूद भी प्रशासन
की ओर से श्रद्धालुओं के लिए यहां कोई
व्यवस्था नहीं की जाती है.
सिकंदरा
प्रतिनिधि के अनुसार शारदीय नवरात्र को लेकर लोगों का उत्साह धीरे-धीरे परवान
चढ़ने लगा है. गुरुवार को नवरात्र के छठे स्वरूप माता कात्यायनी की पूजा की गयी.
वहीं संध्या आरती व दीप जलाने के लिए मंदिरों में भारी भीड़ उमड़ रही है.
मूर्तिकार जहां मां की प्रतिमा को अंतिम रूप देने में लगे हैं वहीं पूजा को लेकर
पंडालों व साज-सज्जा का काम भी युद्ध स्तर पर किया जा रहा है. रंगीन बल्बों की सजावट ने मंदिर व पंडालों
की खूबसूरती में चार चांद लगा दिया है. पूजा को लेकर पूरे प्रखंड क्षेत्र का माहौल
भक्तिमय नजर आ रहा है . दुर्गा सप्तशती के ोक व वैदिक मंत्रोच्चारण से चारों
दिशाएं गुंजायमान हो रहा है.
सौजन्य: प्रभात
खबर